Reluctant Writer
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Writes about fictitious reality.

फूल की आत्मकथा

फूल की आत्मकथा
Image Source : Google

भाग - 1 : आगमन

कई साल पहले की बात है, एक नगर में एक माली और उसके परिवार जन रहते थे। घर के आँगन एवं दरवाजे के आगे हरी-भरी क्यारियाँ थीं। कई दिनों से वर्षा न होने के कारण कोई भी फूल नहीं खिले थे। एक दिन अनायास घनघोर वर्षा होने लगी। काले मेघ छा गए। कई सालों के बाद वर्षा होने के कारण माली की क्यारियों में हरे- हरे घास लहराने लगे। कुछ महीने बाद शर्द ऋतू ने भी दस्तक दे दिया।

सर्दी के दिनों में जब कुहरा हटता था तो माली उस हरे घास पे पड़े मोती जैसे ओश की बूंदो को रुई से इक्कठा किया करता था। उस घास के आस-पास कभी कभी जंगली झाड़ियाँ भी हो जाती थी। शर्द ऋतू जा चुकी थी और धीरे धीरे बसंत ने भी दस्तक दे दिया था।

एक दिन माली अपने घर की सफाई कर रहा था। जब सफाई करने के लिए दरवाजे के पास पहुँचा तो उसे एक नन्हा, सुनहरा, पिले रंग का खिलखिलाता हुआ फूल दिखा। हरी घास और झाड़ियों के बीच वो फूल सबसे अलग दिख रहा था। जब हवा चलती थी तो उस हवा के साथ वो अठखेलियाँ करता। चूँकि ये फूल झाड़ियों के बीच खिला था तो लोग इसे जंगली फूल समझ अपने घर नहीं ले जाते। हालाँकि सबसे अलग दिखने के कारण माली की नज़र इस फूल पर पड़ ही जाती थी।

एक दिन माली शाम को अपने ओटें (बरांडे ) पे बैठा था और चाय की चुस्की की आंनद ले रहा था। तभी उसकी नज़र नन्हे फूल पर पड़ी और वो उस फूल को काफी देर तक निहारता रहा और देखा की कैसे ये अकेला फूल काँटों के बीच है। माली को उस फूल पर बड़ी दया आई और उसने उस फूल को झाडियों से निकाल अपने आँगन में लगा दिया, अपने बाकी सभी फूलों के बीच।

माली ने उस फुल को काफी मन से पाला-पोसा। नन्हा सा फूल जो शूल के बीच था उसे अपने घर लाकर सींचा, उसकी रखवाली की। जब कभी भी माली उदास होता तो नन्हा फूल अपनी अठखेलियाँ दिखाकर माली का मन मोह लेता और उसे खुश कर देता। और जब नन्हा फूल मुर्झा जाता तो माली अपने प्यार से भरे, पानी से उसे सींचता और वो नन्हा फूल फिर खिल जाता। नन्हें फूल और माली को एक दूसरे की आदत सी पड़ गयी थी।

दोनों अपने छोटे से क्यारी में हसी खुशी रहने लगे थे।

भाग - 2 : प्रस्थान

जेठ की तप्ती गर्मी आ चुकी थी और इसी के साथ नन्हें फूल के जीवन में भी आपदा आ गयी। माली की तबीयत अब कुछ ठीक नहीं रहने लगी। कई बड़े-बड़े वैद्ययों को दिखाया गया लेकिन माली की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। माली के सेवा के लिए उसके परिवार जनो को आना पड़ा। परिवार जन भी नन्हें फूल को काफी पसंद करते थे। माली की सेहत में सुधार हो ही रहा था की अकस्मात माली की मिर्त्यु हो गयी। कई दिनों तक सभी लोग शोक में रहे। माली के परिवार जनो ने उस नन्हें फूल को कुछ साल अपने पास रखा। उसकी लगभग उसी प्रकार ख्याल रखी जैसे माली रखता था।

लेकिन समय की अभाव और स्वयं की परिस्थिति ठीक न होने के कारणवश नगर में जीवनयापन करना मुश्किल हो रहा था। नन्हा फूल भी अब उदास रहने लगा था। नगर के परिवार जन ये नहीं जानते थे की ये नन्हा फूल झाडियों से आया था। नन्हें फूल की सुंदरता देख कर उन्हें लगता था की ये शहरी फूल है। माली के परिवार के कुछ सदस्य शहर में भी रहते थे। नगर के लोगों ने उस नन्हें फूल को शहर भेजने का निर्णय लिया ये सोचकर की शहर में इसकी देख भाल अच्छे से होगी और ये “अपनों के बीच” रहेगा।

नन्हा फूल अपनी इस छोटी से दुनिया को छोड़, परिवार जनों के कहने पर शहर के लिए रवाना हो गया। छः घंटों कि रेलगाड़ी से लम्बी यात्रा कर नन्हा फूल शाम ढलने से पहले “अपनों के बीच” शहर पहुँचता है। नए घर के लोग नन्हें फूल को देखकर बहुत हर्षित होते हैं। उसे खाने के लिए शहरी भोजन देते हैं। जो शहर वाले देते वो चुपचाप खा लेता है।

नन्हा फूल धीरे धीरे शहर में रहने की आदत डालता है। ऊपर से सब सही चल रहा होता है। जो भी अतिथि आते उस नन्हें फूल की सुंदरता देख बहुत खुश होते और अपना मन बहलाते। नन्हें फूल की तारीफ़ करते और कहते “कितना मनमोहक है ये” और फिर चले जाते। नए सदस्य के आने के कारण शहर वालों को दिक्कत भी हो रही थी और वहीँ पर फूल किशोर तो हो रहा था लेकिन अंदर ही अंदर मुर्झाता जा रहा था। वातावरण में एक असहज सी स्थिति हो गयी थी।

यहाँ न तो उस फूल के कोई दोस्त थे, न तो कोई हरा घास जहाँ वो अठखेलियाँ करता। यहाँ बस ये इक अकेला फूल था। उठना-बैठना अलग होने की वजह से वो दूसरे फूल से मित्रता भी नहीं कर पा रहा रहा था। लाख कोशिशों के बाद भी उसका कोई मित्र नहीं बना। अंत में उसने अपने अकेलपन से ही दोस्ती कर ली और वो अपनी ही दुनिया में खुश रहने की कोशिश करने लगा ।

नन्हा फूल न तो अब वो माली का रहा, ना उस आँगन का और ना ही उस शहर वालों का।

भाग - 3 : जीवनयापन

कुछ साल बीत गए। नन्हा फूल अब वस्यक हो चूका था। शहर के सारे जन कार्यरत थे। वो शहर वालों के साथ अब नहीं रह सकता था क्यूँकि उसे अब अपने आय की वय्वस्था करनी थी। रोजी रोजगार की खोज में नन्हा फूल सबको छोड़ महानगर की ओर निकाल पड़ा और अब वहीँ रहने लगा।

महानगर से उसका नगर काफी दूर होने के कारण वो वहां नहीं जा पता था। वो अपने शहर लौटने की बहुत कोशिश करता लेकिन शहर वालों को अब उसकी उतनी अवसक्ता नहीं थी। उसे अपना जीवनयापन महानगर में ही करना पड़ा।

नन्हें फूल को माली एवं माली के परिवार जनों की बहुत याद आती थी। शहर वालों को भी याद करता था। लेकिन उसे माली और वो आँगन की यादें उसे वयाकुल कर देती थी। वो माली जिसने उसे सींचा, पाला, पोसा और इतना प्यार किया।

नगर वाले परिवार जन नन्हें फूल को याद तो करते थे लेकिन समय के मांग की अनुसार अब उनके अपने “नन्हें फूल” खिल चुके थे।

To be continued . . .

P.S - इस कहानी में “फूल” का तात्यपर्य नन्हें बच्चे से है।