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गाँव से मैं शहर निकल पड़ा,
शहर इतना बड़ा था की
मैं छोटा पड़ गया।
धीरे-धीरे रे मना,
धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा,
ऋतु आए फल होय॥
Disclaimer: Above lines are from Sant Kabir.
Poem Source: Google.
वो वक़्त की आवाज़ थी अब ये वक़्त की ही आवाज़ है, हम मुसाफिर चल पड़े जिधर की आवाज़ सुनी। वक़्त मुझसे जो करा ले हम वक़्त के गुलाम हैं।...
मंज़िलें अभी और भी हैं, चलना अभी दूर तक और भी है। आज हार ही हार है, तो क्या हुआ ? कल जीत भी तो है। अभी कुछ भी नहीं...
Hey grief, have you wondered where do they go ? At what places they go ? How does that afterlife place look like ? Is it so peaceful there, That...
शहर, बहुत तेज़ चलती है तुम्हारे यहाँ सभी चीज़ें। मैं थक सा गया हूँ , इस दौड़ में दौड़ते दौड़ते। गाड़ियों का शोर गुल लाल, पिली, नीली, हरी, टीम-टीमाती बत्तियाँ...
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