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अपने तोड़ रहे थे तुम्हें और तुम्हें टूटता देख, मैं टूट रहा हूँ। किस पल छिन ले जायेंगे तुम्हें ये मुझसे ये सोच,मैं तुमसे और बंधता जा रहा हूँ। ये...
Human poured boorishness, Harsher than winter wind Then, you came - As my Spring! It is rightly said, “If winter comes can Spring be far behind ?” People emptied me,...
अब सौंप दिया इस जीवन का, सब भार तुम्हारे हाथों में। है जीत तुम्हारे हाथों में, और हार तुम्हारे हाथों में॥ मेरा निश्चय बस एक यही, एक बार तुम्हे पा...
गाँव से मैं शहर निकल पड़ा,
शहर इतना बड़ा था की
मैं छोटा पड़ गया।
धीरे-धीरे रे मना,
धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा,
ऋतु आए फल होय॥
Disclaimer: Above lines are from Sant Kabir.
Poem Source: Google.
वो वक़्त की आवाज़ थी अब ये वक़्त की ही आवाज़ है, हम मुसाफिर चल पड़े जिधर की आवाज़ सुनी। वक़्त मुझसे जो करा ले हम वक़्त के गुलाम हैं।...
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