मुसाफ़िर और तकिया
मैं तकिया - आओ एक मुसाफ़िर की कहानी सुनाता।
असफलताओं के चोट खा
मुसाफ़िर गिरता, रोता,
बिलखता मुझसे लिपटता।
खुद को अकेला और खोखला सा पाकर,
ख़ुदा से पूछता,
ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ विधाता?
हज़ार सवाल अपने आप से पूछता,
लेकिन एक जवाब न पाता।
बेचैन मन शांत करने को
जग में जब किसी को न पाता,
तब कागज़, कलम से अपनी सारी बातें कहता।
दिन में दर-दर की ठोकरें खाता,
मगर हँस कर सारे दर्द छुपा लेता।
शाम होते ज़रा लड़खड़ाता,
डगमगाता घर को पहुँचता।
फिर रात आती,
उसके सारे दर्द, उसके सारे चोट
उससे मिलने आते
मुसाफ़िर सबसे मिलता,
और मैं तकिया उसके आँसू पौंछ्ता।
मैं तकिया - आओ एक मुसाफ़िर की कहानी सुनाता।
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