मंज़िलें अभी और भी हैं
मंज़िलें अभी और भी हैं,
चलना अभी दूर तक और भी है।
आज हार ही हार है,
तो क्या हुआ ?
कल जीत भी तो है।
अभी कुछ भी नहीं है,
तो क्या हुआ ?
कल सब कुछ होगा,
ये आस अभी और भी है।
हार गए पहले ही दौड़ में,
तो क्या हुआ ?
उठना तो तुम्हें खुद ही है,
और शुरुआत तो यहाँ से भी है
क्यूंकि
मंज़िलें अभी और भी हैं
चलना अभी दूर तक और भी है।
जो चाह थी तुम्हारी
वो तुम्हें नहीं मिली,
पर जो कुछ भी मिला
वो किसी स्वपन देखी चाह
से कम भी नहीं।
आज तुम अस्तित्वहीन हो,
हारे हुए हो,
निराश हो और
असफल भी हो,
पर तुम निर्लक्ष्य नहीं हो।
तो अब चलो, बस चलो
अपने अपार असफलताओं के साथ
लेकर स्वयंम को स्वयंम के साथ।
क्या हुआ अगर
यह, वह रास्ता नहीं ?
भावी चौराहें तो वही हैं
तो बस चलो,अब चल दो
क्यूंकि
मंज़िलें अभी और भी हैं
चलना अभी दूर तक और भी है।
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