Reluctant Writer
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Writes about fictitious reality.

किताबों में मिली मुझे मेरी क़ायनात

किताबों में मिली मुझे मेरी क़ायनात
Image Source: Google
Scene from movie: Namesake

जब सारे प्रयास हो गए निरर्थक
थक हार कर बैठा मैं
और लगा सोचने,
जीवन में है सब कुछ व्यर्थ
तब किताबों ने बतलाया
कि क्या है जीवन का असली अर्थ।

कभी बैठा रहा जो यूँही उदास,
कहने सुनने को कोई न था पास
तब किताबों में मिला कुछ खास।

ढूंढ लिया वो दर्द, वो हंसी, वो आंसू
जो मेरी आँखों से छलकते थे
यही सब तो किताबों में भी लिखे मिलते थे।

घूम न सका जब कोई भी देश
तब किताबों में मिला
अनेक देशों का भेष।

ज़िन्दगी के राह में
जब मिला न कोई हमसफ़र,
अपनों ने भी जब ताल्लुख़ तोड़ दिया
रह गया सफर में मैं अकेला
तब किताबों को अपना हमसफ़र बना लिया।

हक्कित से जब वाकिफ़ हो न सका,
मुक़्कदर ने भी जब मुँह फेर लिया
तब किताबों में मैंने अपना
मुक़्क़मल जहां बना लिया।

कर ना पाया जब मुट्ठी में दुनिया
तब किताबों में मिली अनेक कहानियाँ,
जब जी न सका अपने ख़्वाब
तब किताबों में मिली मुझे मेरी क़ायनात।