Reluctant Writer
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Writes about fictitious reality.

खिड़की और इंतज़ार

खिड़की और इंतज़ार
Image Source : Google

खिड़की और इंतज़ार का एक अटूट सम्बन्ध है। खिड़की के पास बैठे-बैठे और वहाँ से बाहर झाँकते हुए हमारी न जाने कितने अनगिनत यादें बनती जाती हैं।

जैसे सर्दियों में, कोहरे छटने के बाद, घास पे पड़ी ओस की बूदों को इक्कठा करने का इंतज़ार ।
तो वही, गर्मी की छुट्टीयों में डाकिया के डाक का इंतज़ार ।
जेठ की कड़कती धुप में आइसक्रीम वाले काका के आने का इंतज़ार ।
बारिश के दिनों में मेढक के टरटराहट का इंतज़ार ।
तो कभी कागज़ की नाव को बहते हुए देखने का इंतज़ार ।
और शाम ढलते ही, नानी का खिड़की पे अपनी "गुल्लू " का खेल के आने का इंतज़ार ।
रात आते ही, खिड़की पे चाँद के आते ही नानी की कहानियों का इंतज़ार ।

खिड़की और इंतज़ार ।