अलविदा शहर
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अनगिनत अनजाने लोगों की भीड़,
जहाँ अपनों का फटकार मिला
तो वहीं किसी अज़नबी ने हाथ थामा
और उसका सहारा मिला।
किराये के माकन में,
एक घर होने का एहसास।
जिंदगी के जटिल से जटिल समस्यायों में,
उन अजनबियों का साथ।
अपने हर त्यौहार में
तुमने मुझे शामिल किया
और अपनों की कमी न होने दिया।
अकेले होकर भी,
अकेलेपन का ना कभी अहसास हुआ।
मेरे लड़खड़ाते आत्मविस्वाश
को एक पहचान मिला।
तुम्हारी वो ढलती हुई रंगीन शाम,
बच्चों की चचाहट,
चिड़ियों के पंख की फड़-फड़ाहट,
और अपने वजूद के होने की आहट।
काफी कुछ दिया तुमने शहर।
कहते हैं, इश्क़ तो इंसानो से होता है
पर मुझे तो तुमसे हो गया।
तुम मेरा एक हिस्सा हो चुके हो शहर।
तुम्हें अलविदा कहने में
तकलीफ हो रही है
लेकिन ये उम्मीद है की,
हम फिर कभी मिलेंगे
और वैसे ही अपनी
कारवां का शुरुआत करेंगे।
ये जो अधूरी कहानी
मैं छोड़ जा रहा हूँ,
अगर मिले,
तो इसे पूरा करेंगे।
कुछ लोग तुम मिलवा देना,
कुछ यादें मैं भी बुन लूंगा।
तब तक के लिए अलविदा शहर।
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